Rudrashtakam Lyrics by Indresh Ji Upadhyay - रुद्राष्टकम


|| रुद्राष्टकम ||


नमामीशमीशान निर्वाणरूपं 

विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् । 

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं

चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥ 

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं.... 

हे मोक्षरूप, विभु, व्यापक ब्रह्म, वेदस्वरूप ईशानदिशा के ईश्वर और सबके स्वामी शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूं। निज स्वरूप में स्थित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन, आकाश रूप शिवजी मैं आपको नमस्कार करता हूं।१


निराकारमोंकारमूलं तुरीयं 

गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् । 

करालं महाकाल कालं कृपालं 

गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥ 

निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे परमेशवर को मैं नमस्कार करता हूं। २


तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं 

मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा 

लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥ 

जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिर पर सुंदर नदी गंगाजी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीया का चंद्रमा और गले में सर्प सुशोभित है। 3


चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं 

प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् । 

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं

 प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥

 जिनके कानों में कुंडल शोभा पा रहे हैं। सुंदर भृकुटी और विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्न मुख, नीलकंठ और दयालु हैं। सिंह चर्म का वस्त्र धारण किए और मुण्डमाल पहने हैं, उन सबके प्यारे और सबके नाथ श्री शंकरजी को मैं भजता हूं।४

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं 

अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।

 त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं 

भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ ५॥ 

प्रचंड, श्रेष्ठ तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्य के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किए, भाव के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकरजी को मैं भजता हूं।५


कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी 

सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी । 

चिदानन्द संदोह मोहापहारी

 प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६॥

कलाओं से परे, कल्याण स्वरूप, प्रलय करने वाले, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुरासुर के शत्रु, सच्चिदानन्दघन, मोह को हरने वाले, मन को मथ डालनेवाले हे प्रभो, प्रसन्न होइए, प्रसन्न होइए।६


न यावत् उमानाथ पादारविन्दं 

भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।

न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं 

प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७॥ 

जब तक मनुष्य श्री पार्वतीजी के पति के चरणकमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इस लोक में, न ही परलोक में सुख-शांति मिलती है और अनके कष्टों का भी नाश नहीं होता है। अतः हे समस्त जीवों के हृदय में निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइए।७


न जानामि योगं जपं नैव पूजां 

नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् । 

जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं 

प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८॥ 

मैं न तो योग जानता हूं, न जप और न पूजा ही। हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा आप को ही नमस्कार करता हूं। हे प्रभो! बुढ़ापा तथा जन्म के दुख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दुखों से रक्षा कीजिए। हे शंभो, मैं आपको नमस्कार करता हूं।८


नमामीशमीशान निर्वाणरूपं 

विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् । 

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं 

चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥ 

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं.....

 हे मोक्षरूप, विभु, व्यापक ब्रह्म, वेदस्वरूप ईशानदिशा के ईश्वर और सबके स्वामी शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूं। निज स्वरूप में स्थित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन, आकाश रूप शिवजी मैं आपको नमस्कार करता हूं।१

नमः पार्वती पतये हर हर महादेव

Post a Comment

Previous Post Next Post