Vrindavan Pyaro Vrindavan Lyrics - वृंदावन रसामृत - Pujya Shri Indresh Upadhyay Ji
॥ वृंदावन रसामृत ॥
श्यामा हृदय कमल सो प्रगट्यो ।
श्याम हृदय को भाये ॥
वृंदावन श्री वृंदावन ॥
सब सुखसागर, रूप उजागर रहें वृंदावन धाम ।
रूप गोस्वामी प्रगट कियो जहाँ गोविंद रूप निधान ॥
वृंदावन श्री वृंदावन ॥
विहरत निसदिन कुंज गलिन में, वृजजन मन सुख धाम ।
मदन मोहन को रूप निरख, सनातन बलि बलि जाये ॥
वृंदावन श्री वृंदावन ॥
गोपी ग्वाल सब, हिय उर धारे, प्यारो गोपीनाथ ।
मधुसूदन जिन कंठ लगायो, है रही जय जयकार ॥
वृंदावन श्री वृंदावन ॥
गोपाल भट्ट के हृदय वेदना, प्रगट्यो शालिग्राम
रूप सुधा को खान हमारो श्री राधारमण जु लाल ॥
वृंदावन श्री वृंदावन ॥
आतुर हवे हरिवंश पुकारो, श्री राधा राधा नाम ।
सघनकुंज यमुना तट आयो श्री राधावल्लभ लाल ॥
वृंदावन श्री वृंदावन ॥
युगल किशोर को लाड़ लड़ायो नवल कुंज हिय माही ।
कुंज निकुंजन कि रजधारे, व्यास युगल यश गायें ॥
वृंदावन श्री वृंदावन ॥
भुवन चतुर्दश की सुन्दरता, निधिवन करत बिहार ।
श्यामा प्यारी कुंज बिहारी, जै जय श्री हरिदास ॥
वृंदावन श्री वृंदावन ॥
जिनकी कृपा से यह रस प्रगट्यो, वृंदावन अभिराम ।
सप्तर्निधिन को हिय उजियारो (प्राणपियारो), हमारो गिरधर लाल ॥
वृंदावन श्री वृंदावन ॥
॥ जय जय श्री राधे ॥
यह एक श्लोक है जिसे प्रसिद्ध भागवत प्रवक्ता इंद्रेश उपाध्याय ने अपने ही ठाकुरजी (श्री गिरधरलालजी) की प्रेरणा से लिखा है।
इस श्लोक में वृंदावन के सात प्रमुख ठाकुरों और उन्हें प्रकट करने वाले संतों की महिमा का गायन रूप में वर्णन किया गया है। यह वृंदावन रसामृत के नाम से प्रचलित है और बहुत ही सुंदर रचना है। ऐसी रचना के लिए हम महाराज श्री इंद्रेश उपाध्याय को बार-बार नमन करते हैं।
हमने आजकल युवाओं के पसंदीदा प्रवक्ता इंद्रेश उपाध्याय के बारे में भी एक पूरा लेख लिखा है, जो अपने प्रेम और भक्ति के शब्दों से सभी के मन को श्री कृष्ण की ओर ले जाते हैं, जिसमें हमने उनके बारे में अधिक जानकारी प्रदान की है ताकि लोग उन्हें ठीक से जान सकें।
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