shani chalisa lyrics in hindi - श्री शनि चालीसा


शनि चालीसा एक भक्ति गीत है जो भगवान शनि को समर्पित है। शनि चालीसा में 40 पद होते हैं और इसे विशेष रूप से शनिवार को पढ़ने की परंपरा है, जो शनि देवता के लिए विशेष दिन माना जाता है। शनि चालीसा के पाठ से शनि ग्रह के कष्टों और दोषों को दूर करने की मान्यता है। इसे पढ़ने से भगवान शनि की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आने की आशा की जाती है।

||श्री शनि चालीसा||

दोहा

जय-जय श्री शनिदेव प्रभु, 

सुनहु विनय महराज।

करहुं कृपा हे रवि तनय, 

राखहु जन की लाज।।


चौपाई

जयति-जयति शनिदेव दयाला। 

करत सदा भक्तन प्रतिपाला।।

चारि भुजा तन श्याम विराजै।

माथे रतन मुकुट छवि छाजै।।


परम विशाल मनोहर भाला।

टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।

कुण्डल श्रवण चमाचम चमकै।

हिये माल मुक्तन मणि दमकै।।


कर में गदा त्रिशूल कुठारा।

पल विच करैं अरिहिं संहारा।।

पिंगल कृष्णो छाया नन्दन।

यम कोणस्थ रौद्र दुःख भंजन।।


सौरि मन्द शनी दश नामा।

भानु पुत्रा पूजहिं सब कामा।।

जापर प्रभु प्रसन्न हों जाहीं।

रंकहु राउ करें क्षण माहीं।।


पर्वतहूं तृण होई निहारत।

तृणहंू को पर्वत करि डारत।।

राज मिलत बन रामहि दीन्हा।

कैकइहूं की मति हरि लीन्हा।।



बनहूं में मृग कपट दिखाई।

मात जानकी गई चुराई।।

लषणहि शक्ति बिकल करि डारा।

मचि गयो दल में हाहाकारा।।


दियो कीट करि कंचन लंका।

बजि बजरंग वीर को डंका।।

नृप विक्रम पर जब पगु धारा।

चित्रा मयूर निगलि गै हारा।।


हार नौलखा लाग्यो चोरी।

हाथ पैर डरवायो तोरी।।

भारी दशा निकृष्ट दिखाओ।

तेलिहुं घर कोल्हू चलवायौ।।


विनय राग दीपक महं कीन्हो।

तब प्रसन्न प्रभु ह्नै सुख दीन्हों।।

हरिशचन्द्रहुं नृप नारि बिकानी।

आपहुं भरे डोम घर पानी।।


वैसे नल पर दशा सिरानी।

भूंजी मीन कूद गई पानी।।

श्री शकंरहि गहो जब जाई।

पारवती को सती कराई।।


तनि बिलोकत ही करि रीसा।

नभ उड़ि गयो गौरि सुत सीसा।।

पाण्डव पर ह्नै दशा तुम्हारी।

बची द्रोपदी होति उघारी।।


कौरव की भी गति मति मारी।

युद्ध महाभारत करि डारी।।

रवि कहं मुख महं धरि तत्काला।

लेकर कूदि पर्यो पाताला।।


शेष देव लखि विनती लाई।

रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।।

वाहन प्रभु के सात सुजाना।

गज दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना।।


जम्बुक सिंह आदि नख धारी।

सो फल ज्योतिष कहत पुकारी।।

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।

हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं।।


गर्दभहानि करै बहु काजा।

सिंह सिद्धकर राज समाजा।।

जम्बुक बुद्धि नष्ट करि डारै।

मृग दे कष्ट प्राण संहारै।।


जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।

चोरी आदि होय डर भारी।।

तैसहिं चारि चरण यह नामा।

स्वर्ण लोह चांदी अरु ताम्बा।।


लोह चरण पर जब प्रभु आवैं।

धन सम्पत्ति नष्ट करावैं।।

समता ताम्र रजत शुभकारी।

स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी।।


जो यह शनि चरित्रा नित गावै।

कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।।

अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।

करैं शत्राु के नशि बल ढीला।।


जो पंडित सुयोग्य बुलवाई।

विधिवत शनि ग्रह शान्ति कराई।।

पीपल जल शनि-दिवस चढ़ावत।

दीप दान दै बहु सुख पावत।।


कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।

शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।

शनि चालीसा के कुछ मुख्य अंश इस प्रकार हैं:

  1. शनि देव के गुण: इसमें भगवान शनि के गुण, उनके न्यायप्रिय स्वभाव और उनके प्रभाव को दर्शाया गया है।
  2. शनि का प्रभाव: शनि चालीसा में यह भी वर्णित है कि शनि देव कैसे कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं और जीवन की कठिनाइयों को दूर करते हैं।
  3. प्रार्थना और आशीर्वाद: भक्त भगवान शनि से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए शनि चालीसा का पाठ करते हैं और अपनी समस्याओं के समाधान की प्रार्थना करते हैं।

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