शंकर तेरी जटा में, बहती है गंगाधारा,
काली घटा के अंदर, जिमि दामिनी उजारा।
गल मुण्डमाला राजे, शशि भाल में विराजे,
डमरू निदान बाजे, कर में त्रिशूल भारा।
दृग तीन तेज राशि, कटिबन्ध भाग फांसी,
गिरिजा हैं संग दासी, सब विश्व के अधारा।
मृत चर्म भस्मधारी, वृषभराज पर सवारी,
निज भक्त दुखहारी, कैलास में विहारा।
शिव नाम जो उचारे, सब पाप दोष टारे,
ब्रह्मानन्द ना बिसारे, भव सिन्धु पार तारा।
शंकर तेरी जटा में, बहती ही गंगाधारा,
काली घटा के अंदर जिमि दामिनी उजारा।